बस्तर का पठार : जैव विविधता एवं पारिस्थितिक संतुलन एवं संरक्षण
Bastar Plateau: Biodiversity and ecological balance and conservation
छत्तीसगढ़ के हृदय में बसा
बस्तर सिर्फ एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक खजाना नहीं है; यह एक विविध और जीवंत पारिस्थितिकी का भी घर है। 14वीं शताब्दी की शुरुआत में स्थापित, बस्तर का एक समृद्ध इतिहास
है जो इसके प्राकृतिक परिवेश से गहराई से जुड़ा हुआ है। वर्तमान में बस्तर पठार का क्षेत्र वनस्पतियों और जीवों की एक
उल्लेखनीय विविधताओं की प्रचुरता से भरा हुआ है ।
यह घने जंगल, असंख्य पौधों (औषधीय पौधों के साथ) और जानवरों की प्रजातियों से भरा- पूरा क्षेत्र है। साल के जंगल जो लंगूर, बाघ, तेंदुए और हिरण की विभिन्न प्रजातियों सहित वन्यजीवों की एक श्रृंखला के लिए एक महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं साथ ही बस्तर में बहने वाली नदियाँ, जैसे इंद्रावती, सबरी और डंकिनी, क्षेत्र की पारिस्थितिक विविधता में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
आज हम पृथ्वी दिवस मना रहे
हैं, इस क्षेत्र की अद्भुतता और उसके सामने आने वाली चुनौतियों
का विचार करना, साथ ही इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित और
संरक्षित रखने की हमारी जिम्मेदारी को भी नहीं भूलना चाहिए। पृथ्वी दिवस के इस अवसर पर इस लेख में बस्तर क्षेत्र के स्थापना के
बाद से इसकी प्राकृतिक परिवेश के साथ-साथ पारिस्थितिक विविधताओं के बारे में
जानेंगे ।
बस्तर पठार क्षेत्र के पारिस्थितिक विविधताओं को निम्न बिन्दुओं के
आधार पर समझने की कोशिश करते हैं :-
पहला : जैव विविधता एवं पारिस्थितिक संतुलन
दूसरा
: पर्यावरणीय चुनौतियाँ।
तीसरा
: पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान
चौथा : भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित करना।
- मिट्टी का संरक्षण: घने जंगल मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखते हैं।
- जलवायु नियंत्रण: जंगल वातावरण में नमी बनाए रखते हैं, तापमान को नियंत्रित करते हैं, और वर्षा को बढ़ावा देते हैं। जंगल विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों का निवास स्थान प्रदान करते हैं।
- नदियों और जलप्रपातों का महत्व: जल संसाधनों का भंडार: नदियाँ और जलप्रपात क्षेत्र में मीठे पानी का मुख्य स्रोत हैं। जलप्रपात वातावरण में नमी बनाए रखते हैं और तापमान को कम करते हैं। नदियाँ और जलप्रपात जलीय जीवों की विभिन्न प्रजातियों का निवास स्थान प्रदान करते हैं।
- वनों की कटाई: बढ़ती आबादी और लकड़ी की मांग के कारण, बस्तर पठार में तेज़ी से वनों की कटाई हो रही है। इससे मिट्टी का कटाव, बाढ़ और सूखा जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
- खनन: बस्तर पठार में खनिज संपदाओं की प्रचुरता है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियां हो रही हैं। इन गतिविधियों से वायु और जल प्रदूषण, जैव विविधता का नुकसान और आदिवासी समुदायों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- कृषि: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी और जल प्रदूषण हो रहा है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण, बस्तर पठार में अत्यधिक गर्मी, अनियमित वर्षा और सूखे जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
बस्तर पठार की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को बचाने के लिए, निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- वनों की कटाई रोकना: वृक्षारोपण अभियान चलाकर और वन संरक्षण कानूनों को सख्ती से लागू करके वनों की कटाई को रोका जा सकता है।
- खनन गतिविधियों को नियंत्रित करना: खनन गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए कड़े पर्यावरणीय नियमों का पालन करना आवश्यक है।
- स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाना: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करके और जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाकर कृषि से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना और ऊर्जा संरक्षण के उपायों को अपनाना महत्वपूर्ण है।
- जैव विविधता का संरक्षण: बस्तर पठार विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों का घर है, जिनमें से कई दुर्लभ और लुप्तप्राय हैं। इस क्षेत्र के संरक्षण से हम इस अमूल्य जैव विविधता को बनाए रख सकते हैं, जो पारिस्थितिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
- जल संसाधनों का संरक्षण: बस्तर पठार कई नदियों और जल स्रोतों का उद्गम स्थल है, जो लाखों लोगों की जीवन रेखा हैं। इस क्षेत्र के संरक्षण से हम जल संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम कर सकते हैं।
- आदिवासी संस्कृति का संरक्षण: बस्तर पठार में रहने वाले आदिवासी समुदायों की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति, परंपराएं और जीवन शैली है। इस क्षेत्र के संरक्षण से हम उनकी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रख सकते हैं और उनके जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं।
- सतत विकास को बढ़ावा: बस्तर पठार के संरक्षण से हम इस क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों को लाभ होगा और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव कम होगा।
- वन संरक्षण और वृक्षारोपण: बस्तर पठार के वनों की कटाई को रोकना और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना आवश्यक है। इससे वनों का घनत्व बढ़ेगा, मिट्टी का कटाव कम होगा और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।
- जल संसाधनों का प्रबंधन: जल संसाधनों के उचित प्रबंधन के लिए वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण और जल प्रदूषण नियंत्रण जैसे उपायों को अपनाना आवश्यक है।
- सतत कृषि को बढ़ावा: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम करके और जैविक खेती को बढ़ावा देकर सतत कृषि को अपनाना चाहिए। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी और पर्यावरण प्रदूषण कम होगा।
- पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा: बस्तर पठार की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए, पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। इससे स्थानीय समुदायों को आय के नए स्रोत मिलेंगे और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
- आदिवासी समुदायों का सशक्तिकरण: आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करना महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें अपने संसाधनों के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।
- सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग: बस्तर पठार के संरक्षण के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के बीच समन्वित प्रयास आवश्यक हैं।