बस्तर संभाग, छत्तीसगढ़ का एक आदिवासी जनजातीय बहुल क्षेत्र है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहां के लोकनृत्य और लोकगीत स्थानीय लोगों के जीवन, रीति-रिवाजों, और भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। लोकनृत्य और लोकगीत इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग हैं। ये कला रूप पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित होते रहे हैं वे न केवल मनोरंजन का एक स्रोत हैं, बल्कि सामाजिक मूल्यों, परंपराओं और विश्वासों को भी दर्शाते हैं ।
बस्तर संभाग के कुछ प्रमुख जनजातीय लोकनृत्य : -
यहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज, गीत-संगीत, नृत्य सभी एक अलग अंदाज लिए होते हैं। बस्तर में कई तरह के नृत्य आदिवासी जनजातियों के द्वारा किए जाते हैं, जनजातीय बाहुल्यता से भरा बस्तर संभाग में लोकनृत्यों को इस प्रकार से विभाजितकर सकते हैं :-
1. माड़िया जनजाति के लोकनृत्य -
अ) करसाड़ / ककसार नृत्य ।
ब) गौर माड़िया नृत्य ।
2. मुरिया जनजाति के लोकनृत्य -
अ) हल्की/हुल्की नृत्य ।
ब) मांदरी नृत्य ।
स) गेड़ी नृत्य।
3. भतरा जनजाति के लोकनृत्य -
बस्तर संभाग के कुछ प्रमुख जनजातीय लोकगीत : -हालाँकि लोकगीतों के बारे अगर हम बात करते हैं तो बस्तर के जनजातीय लोकगीतों का अधिकांश भाग सवाल-जवाब के रूप में प्रस्तुत होता है, जिसमें महिलाएं दो समूहों में विभाजित होकर एक दूसरे से संवाद करती हैं। एक समूह द्वारा गाये जाने वाले प्रश्नों का उत्तर दूसरा समूह गीत के माध्यम से देता है या फिर पहले समूह द्वारा गायी गयी पंक्तियों को दोहराता है। इन गीतों को 'पाटा' के नाम से जाना जाता है। इन लोकगीतों को क्षेत्रीय जानकारी के आधार पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
।। धार्मिक लोकगीत ।।
।। संस्कार लोकगीत ।।
।। ज्ञानवर्धक लोकगीत ।।
।। अन्य लोकगीत ।।
2. मुरिया जनजाति के लोकनृत्य -