वीरांगना बिलासा बाई “केंवटिन”
******************************************************************************
छत्तीसगढ़ में बिलासा बाई एक देवी के रुप में जानी जाती हैं। लोगों का मानना है कि उनके ही नाम पर बिलासपुर शहर का नामकरण हुआ। बिलासा देवी के लिए छत्तीसगढ़ के लोगों में ख़ासकर केवट समाज में, बड़ी श्रध्दा है | छत्तीसगढ़ सरकार हर वर्ष मत्स्य पालन के लिए एक लाख रुपये का बिलासा देवी पुरस्कार भी देती है। बिलासपुर एयरपोर्ट का नाम भी बिलासा देवी केवट एयरपोर्ट है।
“बिलासा देवी एक वीरांगना थीं. सोलहवीं शताब्दी में जब रतनपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी हुआ करती थी तो राजा कल्याण सहाय बिलासपुर के पास शिकार करते हुए घायल हो गए थे. उस समय बिलासा बाई केवटिन ने उन्हें बचाया था. इससे खुश होकर राजा ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त करते हुए नदी किनारे की जागीर उनके नाम लिख दी थी."
आज उनकी जयंती (18 जनवरी) पर चलिए बिलासा बाई जी के बारे में थोड़ा जानते हैं
:-
आज से लगभग 300 साल पहले जब बिलासपुर शहर नहीं था । निषाद/केंवट संस्कृति के लोग नदी के किनारे बसा कराते थे। अपने जीवन के पारंपरिक कार्यों में आयें दिन जगलों में निवास के साथ जीवन उपार्जन के लिए शिकार के साथ मछली मारने के काम करते थे। अरपा नदी के किनारे बसे निषाद संस्कृति के लोग में बिलासा बाई भी अपने पिता रामा केंवट और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहा करती थी | बिलासा मछली मारने के साथ-साथ नाव भी चलाया करती थी और शिकार भी किया करती थी | गाँव में जंगली सूअर घुस आते थे । एक दिन गांव के जवान सब नदी पर गये और गांव में औरतें ही थी । जंगली सुअर आकर डराने लगा तो बिलासा ने भाले से सुअर को मार दिया तब से विलासा का नाम पूरा गाँव में फैल गया |
मरद बरोबर लगय बिलासा, लागय देवी के अवतार
बघवा असन रेंगना जेखर, सनन सनन चलय तलवार ।
गांव में बंशी नाम का एक वीर जवान भी रहा करता था । वह नाव चलाने में कुशल था और साथ में मछलियाँ भी मारता था | एक बार उसने बिलासा को पानी ने डूबने से बचाया था तब से बंसी और बिलासा दोनों साथ रहते थे फिर दोनों ने शादी कर ली |
क्षेत्र के राजा कल्याण साय एक बार शिकार करने के लिए घनघोर जंगल में चला गए, जंगल में अपने सथियोइन से बिछड़ करअलग हो गए थे तभी एक जंगली सुअर ने उसे घायल कर दिया | वे सूअर से बच कर छिप गए और एक जगह पर कराहते हुए बैठ गए थे तभी गाँव का बंसी उसी रास्ते से आ रहा था घायल देख राजा को गाँव ले गया जहाँ पर बिलासा ने उसकी बहुत सेवा की। राजा ठीक हो जाने के बाद बिलासा और बंशी को साथ ले गये जहाँ पर बिलासा ने धनुष चला कर अपना करतब दिखाया तो बंशी ने भला फेक कर दिखाया । राजा ने दरबार में दोनों को मान दिया और खुश होकर बिलासा को जागीर देकर सम्मानित भी किया| जब बिलासा जागीर लेकर गाँव लौटी तो गांव के गांव उमड़ पड़े | जागीर मिली तो गाँव में बिलासा बाई का मान-सम्मान भी बढ़ गया । गांव, गाँव न रहकर बड़ा क्षेत्र हो गया और आसपास के सब गाँव आपस में जुड़ने लगे | गाँव अब एक नगर में परिवर्तित हो गया था | नए नगर को राजा ने बिलासा के नाम पर रखा और इस तरह से यह नगर बिलासा से बिलासपुर हो गया | बिलासा ने नगर को अच्छे से बसाया फिर राजा की सेना में सेनापति भी बन गयी वहीँ बंशी नगर का मुखिया बन गया |
बिलासा बाई के सन्दर्भ में कई प्रकार की गाथाएं, कवितायेँ एवं कहानियां आज भी क्षेत्र में प्रचलित हैं जैसे:-
छितकी कुरिया मुकुत दुआर, भितरी केंवटिन कसे सिंगार।
खोपा पारै रिंगी चिंगी, ओकर भीतर सोन के सिंगी।
मारय पानी बिछलय बाट, ठमकत केंवटिन चलय बजार।
आन बइठे छेंवा छकार, केंवटिन बइठे बीच बजार।
सोन के माची रूप के पर्रा, राजा आइस केंवटिन करा।
मोल बिसाय सब कोइ खाय, फोकटा मछरी कोइ नहीं खाय।
कहव केंवटिन मछरी के मोल, का कहिहौं मछरी के मोल।
बिलासा बाई केंवटिन का नाम आज अजर-अमर है । उनके नाम पर बसे बिलासपुर में ही हाईकोर्ट है, एअरपोर्ट है | आज भी बिलासा नामक इस वीरांगना के नाम पर कालेज, अस्पताल , रंगमंच, पार्क बनाकर अलग अलग रूपों में पूरा सम्मान दिया जा रहा है। शहर के बीचों-बीच है बिलासा चौक जहाँ बिलासा केवटिन की एक आदमक़द प्रतिमा खड़ी है. 1933 में जब महात्मा गांधी बिलासपुर आये थे तब से चौक गांधी चौरा कहलाता है । आज बिलासा बाई नाम अमर हो गया । सब उन्हें माता बिलासा कहते हैं । अरपा नदी के किनारे माता बिलासा की मूर्ति भी स्लथापित किया गया है ।
सहसपुर लोहारा, जिला कबीरधाम के कविराज बोधन राम निषादराज “विनायक” जी की कविता में बिलासा बाई जी का सम्पूर्ण दर्शन देखने को मिलता है :-
बहुत समय की बात है,वही रतनपुर राज। जहाँ बसे नर नारि वो,करते सुन्दर काज।।
केंवट लगरा गाँव के,कुशल परिश्रमदार। कर आखेटन मत्स्य का,पालत स्व परिवार।।
तट देखन अरपा नदी,इक दिन पत्नी साथ। पत्नी बैसाखा कही,लिए हाथ में हाथ।।
दोनों की थी कामना,सुन्दर हो सन्तान। बैसाखा तो दे गई,कन्या का वरदान।।
सुन्दर सौम्य स्वरूप वो,दिया बिलासा नाम। पिता परशु हर्षित हुआ,देख बिलासा काम।।
बचपन बीता खेल में,शस्त्र कला की चाह। मर्दानों सी तेज वो,करे नहीं परवाह।
साहस उनमें थी भरी,शौर्य पराक्रमवान। दुश्मन तो ठहरे नहीं,कोई वीर जवान।।
नाव चलाना तो उसे,देख लोग थर्राय। सभी काम में दक्ष वो,युद्ध नीति अपनाय।।
अरपा की धारा प्रबल,रही बिलासा डूब। बंशी जी ने थाम कर,दिया किनारा खूब।।
मधुर प्रेम का जन्म तब,अरपा नदी गवाह। वरमाला विधि से हुआ,अद्भुत हुआ उछाह।।
पहुँचे नृप इक दिन यहाँ,राज रतनपुर धाम। अपने सैन्य समेत वो,आखेटक ले काम।।
प्यासा राजा प्यास से,तड़प उठा इक बार। चल आये अरपा नदी,पाये थे सुख चार।।
फिर तो हिंसक भेड़िया,किये अचानक वार। घायल कइ सेना हुये,बहे रुधिर की धार।।
किया बिलासा वार तब,राजा प्राण बचाय। हर्सित राजा थे हुए,सेवा से सुख पाय।।
हुए बिलासा गर्व तब,बंशी फुले समाय। फैली चर्चा राज्य में,जहाँगीर तक जाय।।
बंशी दिल्ली चल दिए,गए बिलासा साथ। सम्मानित दोनों हुए,मिला हाथ से हाथ।।
अरपा तट जागीर भी,दिए बिलासा राज। बरछी तीर कमान से,करती थी वो काज।।
बना बिलासा गाँव जो,वो केंवट की शान। नगरी बना बिलासपुर,है उन पर अभिमान।।
मल्ल युद्ध में अग्रणी,डरते थे अंग्रेज। रहते थे भयभीत सब,छुप जाते थे सेज।।
तोड़ सुपारी हाथ से,करे अचम्भा खेल। बगल दबाके नारियल,दिए निकाले तेल।।
लौह हाथ से मोड़ते,बाजीगर तलवार। नींद बिलासा ने लुटी,मुगलों की सरकार।।
जहाँगीर दिल खोल के,कहा बिलासा मात। सेनापति बन के लड़ो,लो दुश्मन प्रतिघात।।
मान बढ़ा कौशलपुरी,सेनापति बन आय। वंश कल्चुरी शान को,दुनिया में फैलाय।।
अमर बिलासा हो चली,अद्भुत साहस वीर। केंवट की बेटी वही,सहज सौम्य गम्भीर।।
गर्व निषाद समाज की,मर्यादा की खान। ध्वजा वाहिका संस्कृति,नाम बिलासा मान।।
बोधन करत प्रणाम है, मातु बिलासा आज। केंवट कुल की स्वामिनी,किये पुण्य के काज।।
अरपा की इस धार को,देखूँ बारम्बार। सुन्दर दमके चेहरा,चमक उठे हर बार।।
छत्तीसगढ़ी शान है, मातु बिलासा मान। देखो आज बिलासपुर,है इसकी पहचान।।