मेडाराम जात्रा: आदिवासी विरासत का एक जीवंत उत्सव

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आदिवासियों का महाकुंभ  


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हर दो साल में, रंगों, अनुष्ठानों और गहन भक्ति की लाखों गूंजन के साथ एक स्वर में मनाया जाने वाला मेडाराम जात्रा, या सम्मक्का सरलम्मा जात्रा, तेलंगाना राज्य के कोया जनजाति की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रमाण है। इसे आदिवासियों का महाकुंभ माना जाता है। यह एशिया में सबसे बड़े आदिवासी त्यौहार/जात्रा में से एक है।


इस त्यौहार को समर्पण भाव से जश्न मनाने श्रद्धालु तेलंगाना राज्य के जयशंकर भूपपल्ली जिले के मेडाराम गांव में एकत्र होते हैं। यह त्योहार हर दो साल में फरवरी या मार्च के महीने में मनाया जाता है। यह सप्ताह भर का उत्सव करोड़ों भक्तों को आकर्षित करता है, मुख्य रूप से कोया समुदाय से, जो पूजनीय देवियों सम्मक्का और सरलम्मा की वंदना करने आते हैं।


देवी सम्मक्का और सरलम्मा - आदिवासी समुदाय की रक्षक।


मुख्य रूप से यह त्योहार देवी सम्मक्का और सरलम्मा को समर्पित है, जिन्हें आदिवासी समुदाय की रक्षक माना जाता है। सम्मक्का और सरलम्मा की कहानी साहस, त्याग और रक्षा की कहानी है। किंवदंती के अनुसार, सम्मक्का एक आदिवासी रानी थीं, जिन्होंने अपने लोगों के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह युद्ध में मारी गईं, लेकिन उनकी आत्मा उनके लोगों की रक्षा करती रही। सरलम्मा सम्मक्का की बेटी थीं, और उन्होंने भी अपना जीवन अपने लोगों की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया।


देवी सम्मक्का और सरलम्मा की प्रार्थना 

इस उत्सव के दौरान, श्रद्धालु  देवी सम्मक्का और सरलम्मा से प्रार्थना करते हैं और विभिन्न अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। इस त्योहार का मुख्य कार्यक्रम जात्रा है। इस आयोजन के दौरान, भक्त गंगाजल, या पवित्र जल के घड़े, जथा गंगा नदी से मेडारम गांव तक ले जाते हैं। माना जाता है कि गंगाजल देवी-देवताओं द्वारा आशीर्वादित होता है और कहा जाता है कि यह सौभाग्य और समृद्धि लाता है। मेडारम जात्रा आदिवासी समुदाय के लिए महान उत्सव का समय है। यह एक साथ मिलकर अपनी संस्कृति का जश्न मनाने और अपने विश्वास को दृढ़ और मजबूत  करने का त्यौहार है। यह त्योहार पर्यावरण और आदिवासी जीवनशैली को बचाने के महत्व की भी याद दिलाता है।


मेडाराम जात्रा - सांस्कृतिक विविधताओं का महासंगम।

मेडाराम जात्रा केवल एक त्यौहार ही नहीं वरन सांस्कृतिक विविधताओं का महासंगम है, जहाँ पारंपरिक नृत्य, तालबद्ध संगीत, और आत्मा को छू लेने वाली कलायें, देव-अनुष्ठान देखने को मिलता हैं जो इसकी अनूठी सांस्कृतिक रंगोंत्सव में खुद को डुबोने के इच्छुक आगंतुकों को आकर्षित करती है। प्रत्येक कोया जनजाति की मोहक विरासत में एक जीवंत धागा बुना जाता है। "गुस्सादिस" (धातु की घंटियाँ) की तालबद्ध खनक से लेकर "पेरिनी" नृत्य की सुंदरता तक, यह उत्सव जनजाति की विशिष्ट कलात्मक अभिव्यक्तियों को दर्शाता है।


यदि आप आदिवासी संस्कृति के एक अनुपम यात्रा की तलाश में हैं, तो मेडाराम जात्रा आपको बुला रही है। यह कोया जनजाति की अटूट आस्था, धड़कती ऊर्जा, और उनकी अनवरत आत्मा के साक्षी बनने का निमंत्रण है।

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